Tuesday 18 June 2013

यह ज़िन्दगी भी.... उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ !!!!!!!!

HERE S D REALITY OF EVERYONES LYF...N I TRIED 2 EXPRESS IT THRU DIS POEM...

ये ज़िंदगी भी कितनी अजीब होती है 
दो दिन रुलाती है तो दो दिन हसाती है 
ये ज़िंदगी भी कितनी कठिन होती है 
दो दिन ख़ुशी के हो तो चार दिन ग़म के होते हैं 
यह ज़िंदगी भी क्या क्या दिन दिखाती है 
दो दिन सुखी रहे तो चार दिन दुःख में भर देती है 
ये ज़िंदगी भी कितनी उलझी हुई होती है 
दो दिन सवार दे तो चार दिन बिगाड़ देती है 
ये ज़िंदगी भी कैसे कैसे लोगों से मिलाती है 
दो लोग अच्छे मिले तो चार लोग स्वार्थी मिलते हैं 
ये ज़िंदगी भी क्या क्या खेल खेलती है 
दो खेल में हम जीत गए तो चार खेल में हम्हे हरा देती है 
ये ज़िंदगी भी कैसी कैसी उम्मीद दिखाती है 
दो पल में उम्मीद को बढ़ाती है तो चार पल में सुला देती है 
ये ज़िंदगी भी कैसी कैसी चाल चलती है 
दो कदम आगे बड़े तो चार कदम पीछे खींच लेती है 
फिर भी हम ये ज़िंदगी जी रहे हैं इस आस में 
आज नहीं तो कल सब ठीक हो जाएगा हमारे जीवन में 

- रेविना 


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